धनु राशि का स्वामी गुरु है । इस राशि में उत्पन्न जातक का ऊंचा मस्तक, कान बड़े, लग्न भाव क्रूर ग्रह होने की स्थिति में सिर मध्य अल्पबाल अथवा गंजा हो सकता है। गुरु - बुध की स्थिति शुभ हो तो सौम्य एवं शान्त, सरल स्वभाव, धार्मिक प्रकृति, उदार हृदय, परोपकारी, संवेदनशील, करुणा, दया आदि भावनाओं से युक्त होगा। दूसरों के मनोभावों को जान लेने की विशेष क्षमता होगी। इस राशि से प्रभावित व्यक्ति में बौद्धिक एवं मानसिक शक्ति प्रबल होती है। साथ-साथ अश्व जैसी तीव्रता, उत्साह एवं उत्तेजना से कार्य करने की क्षमता होगी। द्विस्वभाव राशि के कारण शीघ्र कोई निर्णय नहीं ले पाए और इनको क्रोध जल्दी नहीं आता, परन्तु जब आता है तो देर तक क्रोधित रहते हैं। अग्नि तत्त्व प्रधान होने के कारण इस राशि के स्त्री-पुरुष कठिन से कठिन समस्याओं को अपने साहस एवं परिश्रम द्वारा सुलझा लेंगे तथा निजी सवारी आदि सुखों की प्राप्ति होगी । शिक्षक, धर्म-प्रचारक, राजनीतिक, वैद्य, डॉक्टर, वकील, पुस्तक व्यवसाय आदि के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी। धनु जातकों के स्वभाव में आगे बढ़ने की बलवली भावना रहती है। धनु जातकों में तीव्र बुद्धि होती है । इनका व्यक्तित्व प्राय: रंगीन और उत्साही होता है। धनु जातक मूलरूप से जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण रखते हैं। इनकी उदारता का लोग प्राय: अनुचित लाभ उठाने का भी प्रयास करते हैं। विशेष उपाय-बृहस्पतिवार को व्रत रखना तथा सूर्य भगवान् एवं अपने इष्ट देव की उपासना शुभ एवं कल्याणप्रद रहेगी।
शुभ नग–इस राशि वालों को पुखराज रत्न 5, 7, 9 या 12 रत्ति के वज़न का सोने की अंगूठी में जड़वाकर तर्जनी अंगुली में धारण करें। स्वर्ण या ताम्र बर्तन में कच्चा दूध, गंगा जल, पीले पुष्पों एवं “ॐ ऐं क्लीं बृहस्पताये नमः"के बीज मन्त्र द्वारा अभिमंत्रित करके धारण करना चाहिए। (जप संख्या - 16 हज़ार)